इतिहास
स्वतंत्रता से पहले
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत को खाद्य की भारी कमी का सामना करना पड़ा था और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 01 दिसम्बर, 1942 को गवर्नर जनरल्स काउंसिल के वाणिज्य सदस्य के अधीन एक खाद्य विभाग की स्थापना की गई थी। फर्स्ट सेक्रेटरी फूड, श्री
बेंजामिन जॉर्ज होल्ड्सवर्थ, सीआईई, आईसीएस द्वारा तैयार किए गए नोट का उद्धरण निम्नानुसार है, जिसे गृह विभाग की फाइल संख्या 388/42-पब्लिक से लिया गया है, जिसमें गृह विभाग द्वारा एक नए खाद्य विभाग के गठन हेतु औपचारिक संकल्प जारी करने संबंधी प्रस्ताव का
उल्लेख किया गया है।
सारांश
(खाद्य विभाग की फाइल संख्याख 55(2)/1943/ई)
प्रस्ता्व किया जाता है कि नया खाद्य विभाग कल से अर्थात् 01 दिसम्ब्र से औपचारिक रूप से अपना प्रचालन शुरू करें।
हस्तातक्षरित/- बी.जी. होल्ड्स3वर्थ, 30/11/42
यथा प्रस्ताचवित
हस्ता्क्षरित/- लिनलिथगो, 30/11/42
कृपया आवश्य।क अधिसूचना जारी करें।
हस्ता्क्षरित/- वाई.एन. सुकथनकर, 2/12/42
इस विभाग के गठन संबंधी संकल्प- जारी करने की आवश्य.कता के बारे में सचिव से चर्चा की गई है। संकल्प का मसौदा और आवश्य क अधिसूचनाओं के मसौदे नीचे प्रस्तु त हैं और सचिव के अवलोकन के पश्चात् इन्हें जारी किया जाए।
हस्तालक्षरित/- एस.सी. सरकार, 2/12/42
मेरे विचार से राजपत्र असाधारण जारी करना आवश्य क नहीं है।
हस्तालक्षरित/- बी.जी. होल्ड्सेवर्थ, 04/12/42
सभी प्रांतीय सरकारों और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों को संबोधित पत्र संख्या 10 एफ.डी./42 दिनांक 10 दिसम्बोर, 1942 में निम्नपलिखित बातें सूचित की गई थी,
"मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि भारत सरकार के खाद्य विभाग ने कार्य शुरू कर दिया है और इसने चीनी और नमक (लेकिन चाय अथवा कॉफी नहीं) सहित खाद्य पदार्थों के मूल्य और संचलन को नियंत्रित करने से संबंधित सभी मुद्दे अपने हाथ में ले लिए हैं। खाद्य पदार्थों से संबंधित
निर्यात व्यापार नियंत्रण संबंधी प्रशासन इस विभाग को हस्तांतरित करने के संबंध में अधिसूचना जारी की जा रही है। सेना के लिए खाद्य पदार्थों की खरीद, जो इस विभाग का एक कार्य होगा, एतद्पश्चात् घोषित की जाने वाली तारीख तक आपूर्ति विभाग द्वारा जाती रहेगी।"
तत्पश्चात् पत्र संख्या एफ 12-ई(एफडी)/42 दिनांक 29 दिसम्बर, 1942 में निम्नलिखित पत्र जारी किया गया था:
"खाद्य विभाग की अधिसूचना संख्या 12.ई(एफडी)/42 दिनांक 8 दिसम्बर, 1942 के तहत खाद्य पदार्थों की अधिप्राप्ति और खरीद के लिए खाद्य विभाग के अंतर्गत एक कार्यकारी संगठन की स्थापना की गई है। यह संगठन, जिसके प्रमुख खाद्य पदार्थ महानियंत्रक हैं, 01 जनवरी, 1943
से सेना की खाद्य संबंधी सभी आवश्यकताओं की अधिप्राप्ति और खरीद, जो वर्तमान में आपूर्ति विभाग के अधीन है, का कार्यभार संभालेगा। उसी तारीख से इन मामलों के संबंध में सभी पत्राचार, जो अब तक आपूर्ति विभाग अथवा आपूर्ति महानिदेशालय को संबोधित किए जा रहे थे, क्रमश:
खाद्य विभाग, इम्पीरियल सेक्रेटेरिएट, नई दिल्ली और खाद्य पदार्थ महानियंत्रक, जामनगर हाउस, शाहजहां रोड, नई दिल्ली को संबोधित किए जाएंगे। जो पत्राचार बम्बई, कलकत्ता, मद्रास, कानपुर, कराची और लाहौर में अब तक आपूर्ति विभाग के अंतर्गत आपूर्ति नियंत्रक को भेजे
जाते रहे हैं, अगला नोटिस जारी होने तक उन्हें ही संबोधित किए जाएंगे।"
तथापि, विभाग के कार्य में वृद्धि होने के कारण अगस्त, 1943 में खाद्य सदस्य का एक अलग पोर्टफोलियो बनाया गया। वर्ष 1946 में, जब भारत की अंतरिम सरकार बनी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद खाद्य और कृषि विभाग के मंत्री बने।
स्वतंत्रता के बाद
खाद्य विभाग का पुनर्गठन 29 अगस्त, 1947 को खाद्य मंत्रालय के रूप में किया गया था। उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार वर्ष 1947 में शर्करा और वनस्पति निदेशालय खाद्य मंत्रालय का एक अंग था। अधिक प्रशासनिक कार्य कुशलता और मितव्ययिता को ध्यान में रखकर 01 फरवरी, 1951
को कृषि मंत्रालय को खाद्य मंत्रालय के साथ मिला दिया गया, जिससे खाद्य और कृषि मंत्रालय का गठन हुआ। समय के साथ-साथ कार्य की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि होने के कारण दो अलग मंत्रालयों अर्थात् खाद्य मंत्रालय और कृषि मंत्रालय का गठन अक्तूबर, 1956 में किया गया,
लेकिन 17 अप्रैल, 1957 को फिर से इनका विलय करके खाद्य और कृषि मंत्रालय का नाम दिया गया। 30 दिसम्बर, 1958 को केंद्रीय और राज्य भंडारण निगमों से संबंधित कार्य खाद्य और कृषि मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य विभाग को हस्तांतरित किया गया।
वर्ष 1960 में इस मंत्रालय को दो विभागों में विभाजित किया गया अर्थात् खाद्य विभाग और कृषि विभाग। खाद्य विभाग को नागरिक और सैन्य आवश्यकताओं के लिए खाद्यान्नों की खरीद, राज्यों को आयातित खाद्यान्नों का वितरण, समन्वयन, राष्ट्रीय खाद्य नीति के नियोजन के
निरूपण और मागदर्शन तथा खाद्यान्नों के आयात और निर्यात के विनियमन की जिम्मेदारी दी गई। शर्करा और वनस्पति निदेशालयों को खाद्य विभाग में रखा गया। विभाग के पास शर्करा और वनस्पति उद्योगों के विकास के लिए कई स्कीमें थीं। इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के विकास के लिए
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान शिक्षण, प्रशिक्षण और अनुसंधान से सक्रिय रूप से जुड़ा था।
वर्ष 1962 में, मत्स्य पालन, फल और सब्जी से संबंधित कुछ विषय कृषि विभाग से हटाकर खाद्य विभाग को हस्तांतरित कर दिए गए थे। तत्पश्चात् ‘शर्करा’ से संबंधित कुछ मदें भी कृषि से हटाकर खाद्य विभाग को हस्तांतरित कर दी गई थीं। इनमें भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान,
लखनऊ; गन्ना उत्पादन संस्थान, कोयम्बतूर और भारतीय केंद्रीय गन्ना समिति शामिल हैं।
वर्ष 1965 में, देश में खाद्यान्नों, विशेष रूप से गेहूं की भारी कमी को देखते हुए खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के अंतर्गत विभाग में भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) की स्थापना की गई थी।
जनवरी, 1966 में, सामुदायिक विकास और सहकारिता मंत्रालय का विलय खाद्य और कृषि मंत्रालय के साथ कर दिया गया और खाद्य, कृषि, सामुदायिक विकास और सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। 1966 में ही मत्स्य पालन, वन्य जीवन संरक्षण, पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम,
उर्वरक संचलन, गहन कृषि जिला योजना आदि को फिर से खाद्य विभाग से हटाकर कृषि विभाग को दे दिया गया।
वर्ष 1968 में, गन्ना अनुसंधान और गन्ना विकास स्कीम को भी खाद्य विभाग से हटाकर फिर से कृषि विभाग को दे दिया गया। सूखा, अभाव और अकाल के दौरान राहत उपायों और ऐसी परिस्थितियों में जन हानि से संबंधित समन्वयन कार्य खाद्य विभाग को सौंप दिया गया।
वर्ष 1971 में, खाद्य, कृषि, सामुदायिक विकास और सहकारिता मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि मंत्रालय कर दिया गया, जिसमें खाद्य विभाग सहित 4 विभाग बनाए गए।
नवम्बर, 1976 में, शर्करा और वनस्पति निदेशालयों को अलग कर दिया गया जिसमें शर्करा निदेशालय को खाद्य विभाग में रखा गया और वनस्पति, वनस्पति तेल और वसा आदि से संबंधित कार्यों को नागरिक आपूर्ति और सहकारिता मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया।
वर्ष 1983 में, खाद्य विभाग को कृषि मंत्रालय से अलग कर दिया गया और एक नए खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय का गठन किया गया। निम्नलिखित कार्य मंत्रालय को हस्तांतरित किए गए,
- नागरिक और सैन्या आवश्यिकताओं के लिए खाद्य पदार्थों की खरीद और उनका निपटान
- अंतर्राष्ट्री य गेहूं परिषद, अंतर्राष्ट्रीय शर्करा परिषद, विश्व खाद्य परिषद और आईएफपीआरआई
- अन्य देशों के साथ संधि और करार निष्पादित करना और खाद्यान्नों तथा अन्यद खाद्य पदार्थों के संबंध में व्यापार और वाणिज्यन के लिए अन्या देशों के साथ संधियों, कन्वेंाशन आदि का कार्यान्वंयन
- खाद्यान्नोंव और चीनी सहित अन्यव खाद्य पदार्थों के भंडारण के लिए गोदामों को किराए पर लेना और उनका अधिग्रहण
- खाद्यान्नों और चीनी सहित अन्यह खाद्य पदार्थों के संबंध में अंतर्राज्यी य व्याापार और वाणिज्य्
- फल और सब्जी प्रसंस्क रण उद्योग, गुड़ तथा खांडसारी सहित चीनी उद्योग एवं खाद्यान्नय पिसाई उद्योग से संबंधित उद्योग, जो लोक हित में केंद्र के नियंत्रणाधीन है।
- केंद्रीय भंडारण निगम और राज्यत भंडारण निगम
- खाद्यान्नोंय की आपूर्ति और वितरण में व्यापार और वाणिज्य
- चीनी और खाद्यान्नों के अतिरिक्त अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पागदन, आपूर्ति और वितरण में व्या पार और वाणिज्यत
- खाद्यान्नों, खाद्य पदार्थों और चीनी का मूल्या नियंत्रण
- शर्करा निदेशालय, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, शर्करा उद्योग विकास परिषद और खाद्य विभाग के अंतर्गत अन्यि अधीनस्था कार्यालयों से संबंधित मामले
जून, 1991 में, एक स्वतंत्र खाद्य मंत्रालय का गठन किया गया। लेकिन मार्च, 1992 में कार्य कुशलता में सुधार करने के उद्देश्य से खाद्य मंत्रालय, जिसमें एक ही विभाग था, को दो विभागों में बांट दिया गया, खाद्य विभाग और खाद्य खरीद और वितरण विभाग।
4 जून, 1997 को खाद्य मंत्रालय और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय का विलय कर खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय का गठन किया गया जिसमें 3 विभाग रखे गए अर्थात् खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग, शर्करा एवं खाद्य तेल विभाग और उपभोक्ता मामले विभाग।
15 अक्तूबर, 1999 को खाद्य और उपभोक्ता मामले मंत्रालय का नाम बदलकर उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का नाम दिया गया जिसमें ये तीनों विभाग यथावत रखे गए।
अंतत: नई सहस्राब्दी में 17 जुलाई, 2000 को तत्कालीन उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का नाम उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय रखा गया जिसमें खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग और उपभोक्ता मामले विभाग के नाम से दो विभाग रखे गए जो
अब भी कार्यरत है। 01 दिसम्बर, 2017 को इसकी हीरक जयन्ती समारोह आयोजित की जाएगी।